Uttarakhand News: उत्तराखंड में धार्मिक विवाद, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने स्वामी रामदेव को नोटिस भेजने का किया ऐलान

Uttarakhand News: उत्तराखंड में धार्मिक विवाद एक नया मोड़ लेता हुआ दिखाई दे रहा है, जब शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने स्वामी रामदेव को नोटिस देने का ऐलान किया। यह विवाद तब शुरू हुआ, जब स्वामी रामदेव ने अनुच्छेद 370 के संदर्भ में एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने इसके कार्यान्वयन का समर्थन किया था। शंकराचार्य ने कहा कि स्वामी रामदेव ने देश के संविधान के खिलाफ बयान दिया और उनका यह बयान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्वामी रामदेव ने यह कहा था कि अगर अनुच्छेद 370 लागू होता, तो गोवध पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जाता।
यह बयान एक धार्मिक सम्मेलन के दौरान दिया गया, जो वसंत विहार के ऑफिसर्स कॉलोनी में आयोजित किया गया था। शंकराचार्य ने इस सम्मेलन में यह आरोप लगाया कि स्वामी रामदेव ने केवल यह कहा था कि अनुच्छेद 370 की वजह से गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध लगता, लेकिन वह इस बयान को न केवल गलत मानते हैं, बल्कि इसे हिंदू धर्म के खिलाफ भी बताते हैं।
चार धाम के बारे में शंकराचार्य का बयान
इस दौरान, शंकराचार्य ने चार धाम मंदिरों के विषय में भी कुछ महत्वपूर्ण बातें साझा की। उन्होंने कहा कि चार धाम के दरवाजे कभी बंद नहीं होते, केवल गर्मी के मौसम के दौरान मंदिर का मुख्य स्थान बंद किया जाता है। इस दौरान, भगवान की पूजा धाम के अन्य स्थानों पर होती है और फिर सर्दियों में पूजा का आयोजन मुख्य स्थान पर होता है। शंकराचार्य ने यह भी कहा कि लोगों में यह गलतफहमी है कि चार धाम में दर्शन केवल छह महीने के लिए उपलब्ध होते हैं, जो कि बिल्कुल गलत है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सर्दियों में यात्रा 16 दिसंबर से शुरू होगी, और इसे लोगों के बीच प्रचारित किया जाएगा।
स्वामी रामदेव पर आरोप और विवाद
स्वामी रामदेव के द्वारा अनुच्छेद 370 के समर्थन में दिए गए बयान ने शंकराचार्य को गहरे आहत किया। उन्होंने कहा कि स्वामी रामदेव का यह बयान ना केवल देश की एकता और अखंडता के खिलाफ था, बल्कि यह हिंदू धर्म की अवधारणा के भी खिलाफ था। शंकराचार्य ने आरोप लगाया कि स्वामी रामदेव ने अपने बयान में कहा था कि अनुच्छेद 370 के कारण गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध था, जो एक सकारात्मक पहलू था, लेकिन स्वामी रामदेव ने इसको तवज्जो दी, जिससे धार्मिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से उनका बयान गलत साबित होता है।
स्वामी रामदेव ने इस बयान में कहीं ना कहीं यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर में गौवध पर पाबंदी थी, लेकिन शंकराचार्य ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह बयान हिन्दू धर्म की परंपराओं और धार्मिक विश्वासों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्वामी रामदेव के बयान में झूठ और भ्रम फैलाने की कोशिश की गई थी, जिससे समाज में विघटन उत्पन्न हो सकता था।
हिंदू धर्म में गाय के महत्व पर शंकराचार्य का जोर
शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों की ओर इशारा करते हुए कहा कि हिंदू धर्म का पहला सिद्धांत गाय की पूजा है। उनका कहना था कि हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और यह हमारे समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थ
िक धारा का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई हिंदू गाय की पूजा नहीं करता है तो वह असली हिंदू नहीं हो सकता। शंकराचार्य ने यह विचार व्यक्त किया कि यदि स्वामी रामदेव गाय के महत्व को नकारते हैं, तो उन्हें हिंदू धर्म से बाहर कर दिया जाना चाहिए।
शंकराचार्य का नोटिस और आगामी कार्रवाई
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने स्पष्ट किया कि स्वामी रामदेव के खिलाफ एक कानूनी नोटिस भेजा जाएगा। उनका कहना था कि स्वामी रामदेव ने बिना तथ्यों के आधार पर एक राष्ट्रीय और धार्मिक विषय पर विवादित बयान दिया, जो देश के लिए खतरे का कारण बन सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वामी रामदेव ने जो आरोप लगाए, उनका कोई प्रमाण नहीं था और अगर किसी ने यह आरोप लगाए हैं, तो उन्हें इसे साबित करने की जिम्मेदारी भी लेनी होगी।
शंकराचार्य ने यह भी कहा कि अगर स्वामी रामदेव के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की जाती है तो वह इसका समर्थन करेंगे, क्योंकि उनका मानना है कि ऐसे बयान देश और धर्म के लिए खतरनाक हो सकते हैं। शंकराचार्य ने यह भी जोड़ा कि स्वामी रामदेव को हिंदू धर्म से बहिष्कृत कर देना चाहिए, क्योंकि वह हिंदू धर्म की बुनियादी मान्यताओं का पालन नहीं कर रहे हैं।
धार्मिक नेताओं के बीच बढ़ते विवाद
यह घटना दिखाती है कि धार्मिक नेता भी समय-समय पर एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं, जो कभी-कभी व्यापक विवादों का कारण बन जाता है। शंकराचार्य के इस बयान से न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी एक नया विवाद शुरू हो सकता है। यह मामला सिर्फ धार्मिक विश्वासों का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और समाजिक सद्भावना का भी है।
स्वामी रामदेव के अनुच्छेद 370 पर दिए गए बयान ने उनके समर्थकों और आलोचकों के बीच एक कड़ा विभाजन उत्पन्न कर दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शंकराचार्य द्वारा दी गई कानूनी नोटिस और कार्रवाई में कोई असर पड़ता है, और इस विवाद का अंत किस रूप में होता है।
उत्तराखंड के इस विवाद ने एक बार फिर से धर्म, राजनीति और समाज के बीच के रिश्तों को उजागर किया है। स्वामी रामदेव और शंकराचार्य के बीच यह विवाद केवल एक व्यक्तिगत मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करने वाला मामला बन गया है। आने वाले समय में इस विवाद का समाधान किसी समझौते से होगा या फिर यह और बढ़ेगा, यह कहना मुश्किल है। हालांकि, इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक विचारों और सार्वजनिक बयानों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।






