दस मार्च को जिले में कौन सा दल बनेगा सिरमौर रूस यूक्रेन युद्ध के बीच थमा जीत हार की कयासबाजी का दौर.

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रुड़की। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच शहर की गली कूंचों व ग्रामीण इलाकों की चौपालों पर भले ही विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर कयासबाजी का दौर जंग की चर्चाओं के बीच थम सा गया हो लेकिन सियासी गलियारों में ये सवाल जरूर तैर रहा है कि क्या इस बार भाजपा अपना दबदबा कायम रख पाएगी या फिर कांग्रेस की सीटों में इजाफा होगा अथवा बसपा अपना खाता खोल पाएगी।हालांकि इसका पता तो दस मार्च को सामने आएगा लेकिन मतदान के कारण सियासी दलों की चिंता जरूर बढ़ी हुई है।
विधानसभा चुनाव के लिए 14 फरवरी को मतदान हुआ था।मतदान के बाद से सियासी दलों के प्रत्याशियों ने समर्थकों से बूथ वार फिल्डबैक लेकर गुना भाग कर अपनी किस्मत के सितारे को चमकाने के लिए जीत के समीकरण बैठाने शुरू कर दिए थे।शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में भी हार जीत की कयासबाजी का दौर चला। प्रत्याशियो के समर्थक गुणाभाग कर अपने चहेते प्रत्याशी के जीत के आंकड़े निकालकर लोगों के सामने रख रहे थे।लेकिन जैसे ही रूस यूक्रेन के बीच युद्ध का आगाज होने के साथ ही शहर से लेकर देहात तक चुनावी नतीजों को लेकर चला आ रहा कयासबाजी का दौर थम कर अब हर जगाह युद्ध को लेकर चर्चा की जा रही है।लेकिन इस बीच भले ही चुनावी नतीजों को लेकर कयासबाजी धीमी पड़ गयी हो किंतु सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जरूर हो रही है कि राज्य में किस दल को बहुमत मिलेगा या फिर एक दो सीटें बहुमत से कम रह जाएगी,साथ ही यह भी चर्चा हो रही है कि जिले की 11 विधानसभा सीटों में से ज्यादा किस दल के खाते में जाएगी।चर्चा ये भी है कि क्या भाजपा साल 2017 वाला इतिहास दोहरापायगी।या फिर कांग्रेस की सीटें बढ़ने जा रही है या इस बार बसपा का सूखा खत्म होने जा रहा है।साल 2017 में जिले की 11 विधानसभा सीटों में से हरिद्वार, रानीपुर ,हरिद्वार ग्रामीण, लक्सर, खानपुर ,रुड़की व झबरेड़ा सीट भाजपा ने जीती थी जबकि कांग्रेस के खाते में मंगलौर, पिरान कलियर व भगवानपुर सीटे आयी थी जबकि बसपा का खाता भी नही खुल पाया था।लेकिन इस चुनाव में जहां भाजपा व कांग्रेस पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ी वही बसपा भी जिले की कई सीटों पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ती दिखाई दी। राजनैतिक विशेषज्ञ वैसे तो बसपा का खाता खुलने की उम्मीद लगा रहे है वही जिले में कांग्रेस की सीटें बढ़ने व भाजपा की घटने के कयास भी लगाए जा रहे है।हालांकि दस मार्च को तस्वीर साफ हो जाएगी कि जिले की जनता ने किस दल पर विश्वास जताया है लेकिन इसी बीच सियासी दलों को मतदान प्रतिशत कम होना चिंता का सबब बना हुआ है। यही कारण है कि सियासी दलों के रणनीतिकार चुनाव अच्छा लड़ने की बात तो कर रहे है लेकिन 11 में से कितनी सीटों पर जीत हासिल होगी इस बाबत साफ तौर पर कुछ नही कह पा रहे है।अब देखने वाली बात ये होगी कि कौनसा दल जिले में सबसे अधिक सीट जीतकर सिरमौर बन पाता है।

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