Dehradun की सड़कों पर दिखी अनोखी प्रेम कहानी, चिले दोर्जे बने कुंगजी की आंखों की रोशनी

Dehradun की सड़कों पर चलने वाली हर गाड़ी, गुजरने वाले हर इंसान की निगाहें जब कभी-कभी एक अनोखे दृश्य पर ठहर जाती हैं, तो वह है चिले दोर्जे और उनके प्यारे कुत्ते कुंगजी की प्रेम कहानी। यह कहानी सिर्फ इंसान और जानवर के बीच के संबंधों की नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अनमोल रिश्ता है जो आत्मीयता, त्याग और प्यार से भरा हुआ है।
कुंगजी की खोज और चिल्ले का निर्णय
करीब डेढ़ साल पहले की बात है, जब चिले दोर्जे को शिव मंदिर, राजपुर के पास एक छोटा सा पिल्ला मिला, जो देख नहीं सकता था। उस पल बिना कोई वक्त गंवाए, चिल्ले ने यह निश्चय कर लिया कि वह इस पिल्ले को अपने साथ रखेंगे और उसकी देखभाल करेंगे। आज कुंगजी उनके लिए सिर्फ एक कुत्ता नहीं बल्कि उनका ‘बच्चा’ बन चुका है। चिल्ले की ममता और कुंगजी की मासूमियत ने उनके रिश्ते को और भी खास बना दिया है।
चिल्ले और कुंगजी का देहरादून भ्रमण
चिल्ले जब भी छुट्टी पर होते हैं, तो वे अपने हाथ से बनाए हुए प्रैम (बेबी कैरिज) में कुंगजी को लेकर देहरादून की सड़कों पर घुमाने निकलते हैं। चिल्ले कभी किसी अन्य वाहन से सफर नहीं करते क्योंकि कुंगजी को गाड़ियों की आवाज़ से डर लगता है। वे राजपुर रोड पर स्थित एक स्कूल में गार्ड के रूप में काम करते हैं, और कुंगजी हमेशा उनके साथ होता है, चाहे वह काम पर हों या कहीं घूमने जा रहे हों।
पिछले रविवार को, चिल्ले अपने प्यारे कुत्ते को राजपुर रोड से बुद्धा टेम्पल, क्लेमेंट टाउन तक घुमा रहे थे। चाहे दूरी कितनी भी हो, चिल्ले कुंगजी को हमेशा अपने प्रैम में बिठाकर ही ले जाते हैं। उनका कहना है कि कुंगजी उनके लिए सिर्फ एक कुत्ता नहीं, बल्कि उनका बच्चा है।
अनमोल और अटूट रिश्ता
चिल्ले और कुंगजी के इस अटूट रिश्ते को देखकर हर किसी का दिल पिघल जाता है। चिल्ले का कुंगजी के प्रति यह स्नेह और देखभाल अद्वितीय है। इस रिश्ते की गहराई को समझाने के लिए चिल्ले हमेशा एक मुस्कान के साथ कहते हैं कि कुंगजी का मतलब तिब्बती भाषा में ‘प्यारा’ होता है, और उनके लिए कुंगजी का यही मतलब है—एक प्यारा और मासूम साथी।
चिल्ले का कहना है कि कुंगजी उनके परिवार का इकलौता सदस्य है। उनका यह अटूट बंधन बहुत ही खास और सुंदर है। चिल्ले के चेहरे पर उनके और कुंगजी के रिश्ते के बारे में बात करते हुए एक अनोखी चमक दिखाई देती है। यह कहानी केवल एक इंसान और जानवर के प्रेम की नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि सच्चा प्यार किसी भी जीव के प्रति महसूस किया जा सकता है, चाहे वह इंसान हो या जानवर।
तिब्बत से भारत तक का सफर
चिल्ले की अपनी जीवन यात्रा भी उतनी ही प्रेरणादायक है। वह मात्र सात साल की उम्र में तिब्बत छोड़कर भारत आ गए थे। यहां आकर उन्होंने दसवीं तक पढ़ाई की और फिर भारतीय सेना में भी सेवा दी। चिल्ले का कहना है कि उनके परिवार में अब और कोई नहीं है। जब वह सेना की नौकरी छोड़कर स्कूल में गार्ड के रूप में काम करने लगे, तब से कुंगजी ही उनका परिवार बन गया।
कुंगजी के साथ अनूठी जिंदगी
चिल्ले का कहना है कि कुंगजी के साथ उनकी जिंदगी बेहद सुखद है। वह उसे अपने बच्चे की तरह पालते हैं और उसकी हर ज़रूरत का ध्यान रखते हैं। चाहे वह खाने-पीने का मामला हो या घूमने-फिरने का, चिल्ले हर समय कुंगजी का ख्याल रखते हैं। उनकी यह ममता और कुंगजी का विश्वास एक दूसरे को और भी करीब ले आता है।
कुंगजी, जो देख नहीं सकता, चिल्ले के लिए एक तरह से आंखों की रोशनी बन गया है। वह उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकते। दोनों के बीच का यह अनमोल बंधन एक ऐसी मिसाल है जो हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार और देखभाल किसी भी रिश्ते को खास बना सकता है, चाहे वह इंसान और जानवर के बीच का रिश्ता ही क्यों न हो।
देहरादून की सड़कों पर एक प्रेरणा
चिल्ले और कुंगजी की यह कहानी देहरादून के लोगों के बीच एक प्रेरणा बन चुकी है। जहां भी चिल्ले अपने प्रैम में कुंगजी को लेकर निकलते हैं, लोग उन्हें प्यार भरी निगाहों से देखते हैं। यह दृश्य यह बताता है कि जीवन में सच्चा सुख किसी और चीज़ में नहीं, बल्कि किसी के प्रति स्नेह और ममता में है।
चिल्ले कहते हैं कि कुंगजी के साथ बिताया हर पल उनके लिए एक अनमोल खजाना है। जब वह कुंगजी को देखकर मुस्कुराते हैं, तो वह उनके जीवन का सबसे सुंदर पल होता है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में सच्ची खुशी पैसे, दौलत या शोहरत में नहीं, बल्कि किसी के प्रति सच्चे प्यार और देखभाल में होती है।






