Supreme Court: यासीन मलिक की शारीरिक उपस्थिति पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
Supreme Court ने कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक से संबंधित एक याचिका की सुनवाई की। इस दौरान, कोर्ट ने एक निष्पक्ष सुनवाई के महत्व को दोहराया और अजमल कसाब के मामले का उदाहरण दिया। इस मामले में, मलिक को 1989 में भारतीय वायुसेना के चार कर्मियों की हत्या के मामले में जम्मू की एक अदालत में शारीरिक रूप से पेश होने के लिए कहा गया था। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने इस आदेश के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की है। हालांकि, मलिक ने खुद अदालत में पेश होने की इच्छा जताई है।
यासीन मलिक का कश्मीर जाना, माहौल को बिगाड़ सकता है: CBI
CBI ने जम्मू कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि मलिक की शारीरिक उपस्थिति जम्मू और कश्मीर में माहौल को बिगाड़ सकती है और गवाहों के लिए खतरा पैदा कर सकती है। केंद्रीय एजेंसी के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और ए. जी. मसिह की पीठ से कहा, “हम नहीं चाहते कि उसे जम्मू और कश्मीर ले जाया जाए।” “लेकिन वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से क्रॉस-एग्जामिनेशन कैसे किया जा सकता है?” न्यायमूर्ति ओका ने सवाल किया। साथ ही, पीठ ने जम्मू में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी का भी उल्लेख किया।
मलिक केवल एक और आतंकवादी नहीं हैं…
तुषार मेहता ने यह भी कहा कि अगर मलिक पर्सनली पेश होने पर जोर देते हैं, तो मामला दिल्ली स्थानांतरित किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अलगाववादी नेता “चालाकी” कर रहे हैं जब वे शारीरिक रूप से पेश होने की जिद करते हैं। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि मलिक “सिर्फ एक और आतंकवादी नहीं हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता की दलीलें क्या कहा?
तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद, न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “देखिए, कितने गवाह हैं इस मामले में, हमारे देश में तो अजमल कसाब को भी एक निष्पक्ष सुनवाई मिली थी।” कोर्ट ने इस बात को स्वीकार किया कि एक विशेष अदालत जेल में ही सुनवाई करने की व्यवस्था कर सकती है। इसके बाद, पीठ ने केंद्र सरकार से यह सवाल किया कि कितने गवाह पेश होंगे और उनके सुरक्षा इंतजामात क्या होंगे। मामले की अगली सुनवाई अगले गुरुवार को होगी।
यासीन मलिक का मामला और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
यासीन मलिक एक ऐसा नाम है जो भारतीय राजनीति और कश्मीर में अलगाववादियों के समर्थकों के बीच जाना-पहचाना है। वह जम्मू और कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक हैं और उनका नाम कई आतंकवादी घटनाओं में आया है। 1989 में भारतीय वायुसेना के चार कर्मियों की हत्या के मामले में उनकी भूमिका है, जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। उनके खिलाफ चल रहे केस को लेकर यह मुद्दा उठना स्वाभाविक था, कि क्या उन्हें शारीरिक रूप से अदालत में पेश होने दिया जाए या वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए ही सुनवाई की जाए।
अजमल कसाब की सुनवाई का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अजमल कसाब की सुनवाई का जिक्र किया। 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में शामिल अजमल कसाब को भारत में पकड़ा गया था और उसे अदालत में पूरी तरह से निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिया गया था। इस मामले में कोर्ट ने कसाब को एक निष्पक्ष सुनवाई दी थी, जो कि उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं था, और उसी आधार पर अब यासीन मलिक के मामले में भी समान प्रक्रिया अपनाने की बात की जा रही है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी आरोपी बिना किसी पूर्वाग्रह के अपनी सफाई दे सके।
मलिक के मामले में अदालत की चिंताएं
अदालत ने मामले की गंभीरता को समझते हुए और विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखते हुए कहा कि गवाहों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। यदि मलिक की शारीरिक उपस्थिति के कारण गवाहों को खतरा हो सकता है, तो इसके लिए अदालत को उचित सुरक्षा उपायों पर विचार करना होगा। वहीं, कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाहों का बयान वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से लिया जा सकता है, लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों के बीच सहमति बनानी होगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आतंकवादियों और अलगाववादियों को भी निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है, जैसे अजमल कसाब को मिला था। हालांकि, सुरक्षा कारणों से मलिक की शारीरिक उपस्थिति पर प्रश्न उठाए गए हैं, लेकिन अदालत ने इसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया। सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों को अब गवाहों की सुरक्षा और सुनवाई की प्रक्रिया के लिए उचित कदम उठाने होंगे। यासीन मलिक के मामले में क्या फैसला होगा, यह अगली सुनवाई में सामने आएगा।