अपना उत्तराखंड

Haridwar: हरिद्वार में गंगा जल की बिगड़ती स्थिति, प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरे

Spread the love

Haridwar: गंगा, जिसे भारत में ‘मैया’ के रूप में पूजा जाता है, उत्तर भारत के कई हिस्सों से होकर बहती है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि लाखों लोगों के लिए जीवनदायिनी है। विशेष रूप से हरिद्वार में, जहां हर साल करोड़ों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाने और पानी लेकर घर लौटने के लिए आते हैं। लेकिन अब, गंगा जल की गुणवत्ता एक गंभीर समस्या बन चुकी है, क्योंकि हरिद्वार में गंगा का पानी अब पीने योग्य नहीं रहा है।

गंगा जल की गुणवत्ता रिपोर्ट: बी श्रेणी का पानी

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttarakhand Pollution Control Board) द्वारा हर महीने गंगा जल की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है। हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, हरिद्वार में गंगा जल की गुणवत्ता बी श्रेणी में है, जिसका अर्थ है कि यह पानी स्नान के लिए तो उपयुक्त है, लेकिन पीने के लिए नहीं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि गंगा जल में घुलनशील अपशिष्ट (फीकल कॉलिफॉर्म, मल-जनित प्रदूषण) और घुलित ऑक्सीजन (BOD) के स्तर मानक के अनुसार हैं, लेकिन फिर भी इसे पीने योग्य नहीं माना जा सकता।

Haridwar: हरिद्वार में गंगा जल की बिगड़ती स्थिति,  प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरे

गंगा जल की गुणवत्ता का परीक्षण और इसके परिणाम

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह के अनुसार, बोर्ड हरिद्वार जिले के 12 विभिन्न स्थानों जैसे कि हर की पौड़ी, जप्सुर और दूधियावन आदि पर हर महीने जल गुणवत्ता का परीक्षण करता है। इन स्थानों पर गंगा जल की गुणवत्ता का परीक्षण करने पर यह सामने आया कि गंगा जल पीने योग्य नहीं है, चाहे वह मुख्य धारा में हो या गंगा नहर में बह रहा हो।

गंगा नहर का पानी मुख्य धारा में मिलकर जल की गुणवत्ता को और भी प्रभावित करता है। इस प्रकार, श्रद्धालुओं द्वारा छोड़ दिए गए अपशिष्ट और गंगा घाटों पर फैला हुआ कचरा गंगा जल की गुणवत्ता को और बिगाड़ देता है।

गंगा जल में प्रदूषण के प्रमुख कारण

गंगा जल के प्रदूषित होने के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है गंगा में गिरने वाला उपचारित और अनुपचारित सीवेज और नालियों का पानी। हरिद्वार शहर में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले सीवेज का एक हिस्सा गंगा में गिरता है, जो जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

इसके अलावा, 22 जुलाई से 2 अगस्त तक हुए कांवड़ मेला के दौरान भक्तों ने गंगा के किनारे लगभग 11 हजार मीट्रिक टन कचरा छोड़ दिया, जिसमें से अधिकांश कचरा गंगा में बहकर चला गया।

सीवेज का पानी: एक बड़ा प्रदूषण कारण

हरिद्वार में जल निगम द्वारा संचालित 68 और 14 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) के एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स) में से आधे उपचारित सीवेज का पानी किसानों को सिंचाई के लिए भेजा जाता है, जबकि बाकी बचा पानी गंगा में गिरता है। जब किसानों को पानी की आवश्यकता नहीं होती है, तो इसे सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है।

इस प्रकार, जब सीवेज का पानी उपचारित करने की क्षमता से अधिक हो जाता है, तो कभी-कभी अनुपचारित सीवेज पानी भी गंगा में छोड़ दिया जाता है। इस अनुपचारित पानी की वजह से गंगा जल की गुणवत्ता और खराब हो जाती है।

BOD और फीकल कॉलिफॉर्म: गंगा जल की गुणवत्ता के संकेतक

BOD (Biochemical Oxygen Demand) और फीकल कॉलिफॉर्म जैसे परीक्षण गंगा जल में जैविक प्रदूषण की पहचान करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। BOD यह बताता है कि जल में मौजूद जैविक पदार्थों को समाप्त करने के लिए कितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। फीकल कॉलिफॉर्म जल में मलजनित प्रदूषण (मल और मूत्र) की मात्रा को मापता है।

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, स्नान योग्य नदी जल के लिए BOD का स्तर 5 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। इसी प्रकार, फीकल कॉलिफॉर्म का स्तर 50 MPN प्रति मिलीलीटर से कम होना चाहिए, जो हरिद्वार में गंगा जल में पाया गया।

B श्रेणी के पानी से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम

डॉ. संदीप निगम, वरिष्ठ चिकित्सक, हरिद्वार महिला अस्पताल के अनुसार, B श्रेणी का पानी, जो स्नान के लिए तो उपयुक्त है लेकिन पीने योग्य नहीं है, से पेट संबंधी जलजनित बीमारियों का खतरा हो सकता है। इनमें दस्त, टाइफॉयड, गैस्ट्रोएंटेराइटिस और अन्य जलजनित बीमारियाँ शामिल हैं।

डॉ. संदीप निगम ने यह भी कहा कि यदि गंगा जल को शुद्ध नहीं किया जाता है, तो इसके सेवन से त्वचा संबंधी बीमारियाँ और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

गंगा जल को पीने योग्य बनाने के प्रयास

गंगा जल की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम लगातार गंगा के पानी को शुद्ध करने के प्रयास कर रहे हैं। सीवेज उपचार संयंत्रों के विस्तार और नालों के माध्यम से गिरने वाले कचरे को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, हरिद्वार में गंगा जल को पूरी तरह से पीने योग्य बनाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

गंगा नदी की महिमा और धार्मिक महत्व के कारण इसे ‘नदी माँ’ के रूप में पूजा जाता है, लेकिन इसके जल की स्थिति अब चिंताजनक हो चुकी है। गंगा जल को शुद्ध और पीने योग्य बनाने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए हमें न केवल गंगा के किनारे बढ़ते कचरे और सीवेज के प्रदूषण को रोकने की आवश्यकता है, बल्कि हमें गंगा जल के संरक्षण के प्रति भी जागरूकता फैलानी होगी।

यदि हम गंगा के पानी को शुद्ध रखने में सफल होते हैं, तो यह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक अमूल्य धरोहर साबित होगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button