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Roorkee: चैक इन उपस्थिति के बहिष्कार का ऐलान, ऑनलाईन उपस्थिति स्वीकार्य नही: जितेन्द्र चौधरी

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रुड़की। स्विफ्ट चैट पर शिक्षक उपस्थिति के लिए प्रतिदिन ऑनलाइन चैक-इन ओर लोकेशन साझा करने का उत्तराखंड स्टेट प्राईमरी टीचर्स एसोसिएशन (उ०रा०प्रा०शि०संघ) जनपद हरिद्वार ने बहिष्कार का ऐलान कर दिया हैं।संगठन के जिलामहामंत्री जितेन्द्र कुमार चौधरी ने इस बाबत जिलाशिक्षाधिकारी (प्रा.शि.)को भी पत्र प्रेषित किया हैै।

इससे पूर्व भी जिला संगठन ने अपने पत्र को डीईओ बेसिक के माध्यम से निदेशक, (प्रा०शि०) देहरादून को स्विफ्ट चैट पर शिक्षक उपस्थिति के लिए प्रतिदिन ऑनलाइन चैक-इन ओर लोकेशन साझा करने के विरूद्ध में ज्ञापन प्रेषित किया गया था।

जिला महामंत्री जितेन्द्र कुमार चौधरी ने प्रेषित पत्र में कहा हैं कि स्विफ्ट चैट एप के माध्यम से ऑनलाइन उपस्थिति लोकेशन के साथ चेक-इन का नया फीचर जोडते हुए विद्यालय के शिक्षकों की सत्यनिष्ठा पर संदेह कर पूरे शिक्षक समाज को हतोत्साहित किया गया हैं,इस व्यवस्था से शिक्षकों में भारी रोष है।

संगठन ने मांग की हैं कि जब तक प्रत्येक शिक्षक को स्मार्ट फोन, सिम, मासिक डाटा रिचार्ज की सुविधा विभाग द्वारा उपलब्ध नही करायी जाती है तब तक उत्तरांचल स्टेट प्राईमरी टीचर्स एसोसिएशन (उ०रा०प्रा०शि०संघ) जनपद हरिद्वार का कोई भी सदस्य शिक्षक सेल्फ चेक इन के माध्यम से उपस्थिति दर्ज नही करेगा। उत्तरांचल स्टेट प्राईमरी टीचर्स एसोसिएसन (उ०रा०प्रा०शि०संघ) जनपद हरिद्वार के सदस्य शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन उपस्थिति का बहिष्कार के दौरान ऑनलाइन उपस्थिति न लगाने हेतु जनपद के किसी भी शिक्षक पर विभाग द्वारा कोई कार्यवाही की गयी तो जिला संगठन धरना प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होगा।

चैक इन उपस्थिति से शिक्षकों पर भरोसे का संकट मंडराने की वजह से यह प्रकरण धीरे धीरे विकराल रूप धारण करता जा रहा हैं। शिक्षक नेताओं का मत हैं कि शासकीय व्यवस्था में अनुशासन और पारदर्शिता निस्संदेह आवश्यक हैं, किंतु जब यह व्यवस्थाएं अपनी मूल भावना को छोड़कर केवल संदेह और नियंत्रण के औजार बन जाएं, तो यह चिंतन का विषय बन जाता है। तर्क है कि यह व्यवस्था तकनीकी रूप से उपयोगी है या नहीं; प्रश्न यह है कि क्या यह समस्त शिक्षक समाज , जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन वर्षों से प्रतिबद्धता के साथ कर रहे हैं—उनके आत्मसम्मान पर एक अविश्वास की छाया नहीं है?

राज्य के पर्वतीय और सुदूर क्षेत्रों में नेटवर्क, बिजली और तकनीकी साधनों की सीमाएँ सभी भलीभाँति जानने के बावजूद यह बाध्यता केवल एक और प्रशासनिक बोझ बनकर रह जाऐगी। इस सख्त तकनीकी व्यवस्था थोपना शिक्षकों के उस योगदान की उपेक्षा करता है जो वे कक्षा से बाहर—विद्यालयों की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सामुदायिक सहयोग, और आपदा प्रबंधन जैसे कार्यों में देते हैं। शिक्षक एक प्रेरणा-पुरुष होता है, न कि लोकेशन ट्रैस करने वाला प्राणी।

Manoj kumar

Editor-in-chief

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