CJI DY Chandrachud: सोशल मीडिया के जरिए फैसलों को प्रभावित करने की कोशिशें, पूर्व CJI DY Chandrachud ने जताई चिंता
पूर्व CJI DY Chandrachud ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा कि सोशल मीडिया को आजकल विशेष स्वार्थ समूहों द्वारा अदालतों के मामलों और फैसलों को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने इसे समाज के लिए एक गंभीर खतरा बताया और न्यायाधीशों से सतर्क रहने की अपील की।
सोशल मीडिया और न्यायिक स्वतंत्रता पर खतरा
पूर्व CJI ने कहा कि आज लोग केवल 20 सेकंड के वीडियो देखकर अपनी राय बना लेते हैं, चाहे वह यूट्यूब हो या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म। यह प्रवृत्ति न केवल अदालतों के कार्य पर असर डालती है, बल्कि समाज में गलतफहमियां भी पैदा करती है।
अदालतों के फैसलों पर असर डालने की कोशिशें
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि कुछ समूह आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से अदालतों के काम को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हर नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि अदालत ने किसी फैसले को किस आधार पर लिया है। लेकिन कई बार लोग इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए व्यक्तिगत टिप्पणियां करने लगते हैं, जो कि पूरी तरह गलत है।
“राय बनाने में जल्दी करते हैं लोग”
टीवी कार्यक्रम में बोलते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि आज लोग सोशल मीडिया पर देखे गए कुछ सेकंड के वीडियो के आधार पर राय बना लेते हैं। उन्होंने इसे गंभीर खतरा बताया। उन्होंने कहा, “अदालतें हर निर्णय को तथ्यों और कानून के आधार पर ही तय करती हैं। कोर्ट के लिए कोई मुद्दा छोटा या बड़ा नहीं होता। कोर्ट केवल निष्पक्षता और प्रक्रिया का पालन करती है।”
ट्रोलिंग के दुष्प्रभाव
सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों की ट्रोलिंग के प्रभाव पर बोलते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष स्वार्थ समूहों द्वारा लगातार ट्रोलिंग की जाती है, जिससे अदालतों के निर्णयों को प्रभावित करने की कोशिश होती है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को इस प्रकार के दबाव के प्रति हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका
पूर्व CJI ने कहा कि लोकतंत्र में कानून की वैधता तय करने का अधिकार संवैधानिक अदालतों को सौंपा गया है। उन्होंने कहा, “शक्ति का पृथक्करण यह सुनिश्चित करता है कि विधायिका कानून बनाएगी, कार्यपालिका इसे लागू करेगी और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करेगी और विवादों का निपटारा करेगी।”
नीतियां बनाने का काम सरकार का है
उन्होंने कहा कि कई बार अदालतों पर नीतिगत निर्णय लेने का दबाव भी आता है, लेकिन लोकतंत्र में नीतियां बनाने का काम सरकार के जिम्मे होता है। अदालतें केवल कानून की व्याख्या करने और विवादों को सुलझाने का काम करती हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन
सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन के बारे में पूछे जाने पर, चंद्रचूड़ ने कहा कि समाज एक न्यायाधीश को उनके पद छोड़ने के बाद भी न्यायाधीश के रूप में देखता है। उन्होंने कहा, “एक न्यायाधीश के लिए सेवानिवृत्ति के बाद यह तय करना महत्वपूर्ण होता है कि उनके द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय उनके पूर्व के कार्यों को कैसे प्रभावित करेगा।”
न्यायाधीशों के लिए जिम्मेदारी हमेशा बनी रहती है
चंद्रचूड़ ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का पालन करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि न्यायपालिका में सेवा करना एक जिम्मेदारीपूर्ण कार्य है, जो सेवानिवृत्ति के बाद भी जारी रहता है।
ट्रोलिंग से बचने की जरूरत
चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों की व्यक्तिगत आलोचना और ट्रोलिंग से बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह न केवल न्यायाधीशों की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, बल्कि अदालतों की साख पर भी सवाल उठाता है।
समाज को क्या संदेश?
चंद्रचूड़ ने समाज से अपील की कि वह अदालतों के निर्णयों को समझने और उनका सम्मान करने का प्रयास करे। उन्होंने कहा, “हर नागरिक को अदालतों के निर्णयों पर राय रखने का अधिकार है, लेकिन व्यक्तिगत हमलों और गलतफहमियों से बचना चाहिए।”
पूर्व CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ के विचार न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने की जरूरत को रेखांकित करते हैं, बल्कि समाज को भी सोशल मीडिया के दुरुपयोग से बचने का संदेश देते हैं। उन्होंने न्यायाधीशों और नागरिकों दोनों से अपील की कि वे अपने कार्य और अधिकारों का जिम्मेदारीपूर्वक पालन करें, ताकि न्याय व्यवस्था की गरिमा बनी रहे।