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Uttarakhand news: सरकार के कई बड़े भवनों पर करोड़ों का टैक्स बकाया, कई बार नोटिस के बावजूद भुगतान नहीं हुआ

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Uttarakhand news: उत्तराखंड के गढ़ी कैंट क्षेत्र में कई प्रमुख सरकारी भवनों पर करोड़ों रुपये का टैक्स बकाया है, जिनमें राजभवन और मुख्यमंत्री आवास जैसे प्रतिष्ठित स्थल शामिल हैं। गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड द्वारा कई बार संबंधित विभागों से टैक्स का भुगतान करने का अनुरोध किया गया, लेकिन अब तक कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। इस स्थिति के कारण कर्मचारियों और पेंशनरों को उनकी सैलरी और भत्ते देने में दिक्कतें आ रही हैं और विकास कार्यों में भी रुकावट आ रही है।

कर्मचारियों की सैलरी और विकास कार्यों पर असर

गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड की वित्तीय स्थिति गंभीर हो गई है, क्योंकि इन सरकारी भवनों से टैक्स वसूली में विफलता के कारण बजट की कमी हो रही है। इसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन देने में कठिनाई हो रही है और कई विकास कार्य भी ठप हो गए हैं। पिछले दो वर्षों से कंन्टोनमेंट बोर्ड में चुनाव भी नहीं हुए हैं, जिससे न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया प्रभावित हुई है, बल्कि सरकार के बकायों के निपटान के लिए भी कोई दिशा-निर्देश नहीं मिल पा रहे हैं।

Uttarakhand news: सरकार के कई बड़े भवनों पर करोड़ों का टैक्स बकाया, कई बार नोटिस के बावजूद भुगतान नहीं हुआ

राजभवन और मुख्यमंत्री आवास पर करोड़ों का बकाया टैक्स

गढ़ी कैंट क्षेत्र में कई प्रमुख सरकारी इमारतों पर टैक्स बकाया है। इनमें मुख्यमंत्री आवास, राजभवन, बिजापुर गेस्ट हाउस, वन अनुसंधान संस्थान (FRI), और व्हाइट हाउस जैसे महत्वपूर्ण भवन शामिल हैं। इन सभी भवनों से हर साल लाखों रुपये की टैक्स वसूली होनी चाहिए, लेकिन कई विभागों ने इस टैक्स को समय पर जमा नहीं किया है। मुख्यमंत्री आवास पर 2009 से टैक्स बकाया है और अब तक इसकी कुल बकाया राशि 85 लाख रुपये से ज्यादा हो गई है। वहीं, राजभवन पर करीब 23 लाख रुपये का टैक्स बकाया था, जिसमें से 13 लाख रुपये का भुगतान हो चुका है, लेकिन अब भी 10 लाख रुपये का बकाया है।

बिजापुर गेस्ट हाउस और FRI पर भी भारी बकाया

बिजापुर गेस्ट हाउस पर 20 लाख रुपये से अधिक का बकाया है। कहा जा रहा है कि गेस्ट हाउस के निर्माण के बाद से सिर्फ एक बार पांच लाख रुपये का टैक्स जमा किया गया था। वहीं, वन अनुसंधान संस्थान (FRI) की स्थिति सबसे खराब है। FRI पर कई करोड़ रुपये का टैक्स बकाया है। कंन्टोनमेंट बोर्ड ने बार-बार इस मुद्दे पर पत्राचार किया, लेकिन यह बताया गया कि FRI को तीन भागों में विभाजित किया गया है। FRI का आधा हिस्सा संस्थान के पास है, जबकि बाकी का हिस्सा केंद्र अकादमी स्टेट फॉरेस्ट और इंदिरा गांधी नेशनल फॉरेस्ट अकादमी के पास है। इसके बाद, FRI को 2.63 करोड़ रुपये का बिल भेजा गया है, जबकि अन्य दो संस्थानों को 2 करोड़ रुपये का बिल भेजा गया है।

स्वास्थ्य विभाग और मिल पर भी लाखों रुपये का टैक्स बकाया

गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक जॉइंट अस्पताल स्थित है जो स्वास्थ्य विभाग के अधीन है। इस अस्पताल पर कंन्टोनमेंट बोर्ड का 58 लाख रुपये का बकाया टैक्स है। कंन्टोनमेंट बोर्ड ने कई बार इस मामले में देहरादून के CMO को पत्र लिखा है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इसके अलावा, सिंचाई विभाग की एक जल चक्की भी गढ़ी कैंट क्षेत्र में स्थित है, जिस पर दो लाख रुपये का टैक्स बकाया है।

कंन्टोनमेंट बोर्ड की वित्तीय स्थिति चिंताजनक

गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड पर सरकारी दफ्तरों का करोड़ों रुपये का बकाया है। इसके बावजूद, संबंधित विभागों से बार-बार पत्राचार करने के बावजूद, कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसके कारण कंन्टोनमेंट बोर्ड की वित्तीय स्थिति गंभीर हो गई है और इसका असर कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन और विकास कार्यों पर पड़ रहा है। इस मामले में न केवल कंन्टोनमेंट बोर्ड बल्कि राज्य सरकार को भी तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि सरकारी विभागों पर बकाए को शीघ्र निपटाया जा सके।

क्या है इसका समाधान?

इस स्थिति का समाधान सरकार की ओर से गंभीर पहल के बिना संभव नहीं है। सबसे पहले, सभी विभागों को बकाया टैक्स का भुगतान शीघ्र करना चाहिए और कंन्टोनमेंट बोर्ड को इसका पूरा लाभ मिलना चाहिए। साथ ही, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभागों के बीच समन्वय बेहतर हो, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो। यदि इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड की आर्थिक स्थिति और भी विकट हो सकती है।

गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड में करोड़ों रुपये के बकाए का भुगतान न होने से न केवल सरकारी कर्मचारियों की सैलरी पर असर पड़ रहा है, बल्कि विकास कार्यों में भी रुकावट आ रही है। सरकार को इस गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि इस मुद्दे को जल्द हल नहीं किया गया, तो इसका असर राज्य के समग्र विकास पर पड़ सकता है।

Manoj kumar

Editor-in-chief

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